जयंती माता का मंदिर हिमाचल प्रदेश का ऐतिहासिक और पौराणिक धार्मिक स्थान



बाथू की लड़ी का मंदिर हिमाचल प्रदेश

जयंती माता का मंदिर हिमाचल का एक ऐसा मंदिर जंहा माता जयंती ने अपनी भक्त के प्रेम और स्नेह की बजह से नहीं उठने दी थी अपने भक्त की ढोली, आप भी सोच रहे होंगे की एक माँ अपने भक्त के साथ ऐसा कैसे कर सकती तो देखिए इस वीडियो को इस वीडियो में माँ जयंती माता के मंदिर की ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक जानकारी आपके सम्क्ष्य लाएंगे, जयंती माता का मंदिर महाभारत काल से समवन्दित एक ऐसा धार्मिक स्थान 

जिसका निर्माण पांडवो ने अज्ञात वास के दौरान किया था, यह मंदिर बाण गंगा नदी के किनारे एक पहाड़ की चोटी में स्थित है, हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्थित यह स्थान ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। जयंती माता को "जयंती देवी" के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर और माता की पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। हम आपको अपनी इस वीडियो के माध्यम से इस मंदिर का इतिहास, पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के बारे में जानकारी देंगे। 


एक पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है की काँगड़ा जिसे उस समय त्रिगर्त कहा जाता था, वंहा के राजा की एक बेटी थी, जो माता जयंती की बहुत बड़ी भक्त थी, कहा जाता है की वो हर रोज़ माता जयंती की पूजा अर्चना करने के लिए काँगड़ा किले से मंदिर आया करती थी, राजा की बेटी का विवाह चंडीगढ़ के राजा से होना तय हुआ चंडीगढ़ को उस समय हथनोर कहा जाता था, जंहा नौ रियातस्तो में बाईस राजपूत भाइयो का राज था, उस समय राजनधानी दिल्ली जिसे इंदरप्रस्थ कहा जाता था, वंहा मुगलो के राजा बाबर का राज था, बाईस भाइयो में से एक का विवाह काँगड़ा के राजा की बेटी से होना तय हुआ। कहा जाता है की जब राजा की बेटी की ढोली को राजा के 

सैनिक उठाने लगे तो अचानक ही ढोली बहुत भारी हो गयी, राजा के सैनिको के कई प्रयासों के बाद भी ढोली उस स्थान से तस से मस नहीं हुई, जब राजा की बेटी ढोली से बाहर आती तब ढोली भी उठ जाती और जब वो अंदर बैठती तब ढोली भारी हो जाती, ऐसे में राजा के पंडित ने कहा की माँ जयंती का भी एक अंश ढोली के साथ हथनोर यानी चंडीगढ़ ले जाना होगा तभी यह ढोली उठेगी और जैसे ही माँ जयंती को भी ढोली के साथ लाया गया तो ढोली भी उठ गयी और जिसके बाद चंडीगढ़ में भी माँ जयंती के मंदिर की स्थापना की गयी। आज भी इस मंदिर का एक मदिर चंडीगढ़ में है जो जयंती माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। 


इस मंदिर की स्थापत्य शैली पहाड़ी और स्थानीय कला का अद्भुत मिश्रण है। यह पत्थर और लकड़ी से निर्मित है, जो हिमालयी क्षेत्र की पारंपरिक वास्तुकला को दर्शाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार में भैरो बाबा जी और हनुमान जी की प्रतिमा है, कुछ सीढिया चढ़ते ही मंदिर का मुख्य गर्व ग्रह है, जंहा माँ जयंती विराजमान है, मंदिर के प्रागण में नंदी बैल भगवान् शिव जी की प्रतिमा है, जो बेहद ही ऐतिहासिक और पवित्र है, इस मंदिर में आज ही हिमाचली वास्तुकला की नकाशी आपको पथरो में उकेरित नजर आएगी जो बेहद ही ऐतिहासिक है, साथ ही मंदिर में आपको कई ऐतिहासिक प्रतिमाएं देखने को मिलेगी ,

यह क्षेत्र काँगड़ा के राजाओं के शासनकाल के दौरान उनकी धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। राजाओं ने इस मंदिर का संरक्षण किया और इसे सजाया-संवारा। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जयंती माता देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं। यह माना जाता है कि जब महिषासुर के आतंक से देवता परेशान हो गए, तो देवी दुर्गा ने विभिन्न रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया। जयंती माता उन्हीं रूपों में से एक हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जयंती माता इस क्षेत्र की रक्षक देवी हैं। कहा जाता है कि माता ने काँगड़ा क्षेत्र को आक्रमणकारियों और आपदाओं से बचाया था। इस कारण लोग उन्हें क्षेत्र की संरक्षक मानते हैं।


मंदिर के पास स्थित जलस्रोत को पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इस जल में स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध हो जाते हैं। यह जल स्रोत कभी नहीं सूखता, जो इसे दिव्य बनाता है। नवरात्रि के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है। इस समय विशेष पूजा, हवन और भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की यह मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से माता की आराधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हर साल जयंती माता के मंदिर में विशेष मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।


मंदिर ऊँचाई पर स्थित है, इस मंदिर के प्रागण से आप धौलाधार की खूबसूरत पहाड़ियों का दृष्य देख सकते है, साथ ही शीतल हवा का स्पर्श आपको आनंदित कर देगा, यह मंदिर चारों ओर से घने जंगलों और पहाड़ों ने घेरा हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और शांति भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक सुकून प्रदान करती है।


जयंती माता का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हिमाचल प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक और पौराणिक धरोहर का प्रतीक भी है। यह स्थान भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और शांति प्रदान करता है और यहाँ आने पर श्रद्धालु अपने सभी दुखों को भूलकर एक दिव्य अनुभव प्राप्त करते हैं। यदि आपने अभी तक इस मंदिर की यात्रा नहीं की तो आज ही अपनी हिमाचल प्रदेश की यात्रा में इस स्थान को शामिल कर यंहा की सुंदरता को अवश्य निहारे, और यदि आपने अभी तक हमारा चैनल सब्सक्राइब नहीं किया तो चैनल को लाइक शेयर और सब्सक्राइब करना न भूले।  


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