चामुंडा नंदिकेश्वर धाम ऐसा मंदिर जंहा जलता है हर रोज शव
चामुंडा नंदिकेश्वर धाम जिसे चामुंडा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यह धार्मिक स्थान हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की धर्मशाला तहसील में पालमपुर से मात्र 19 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यह शिव शक्ति का धार्मिक मंदिर है जिसमे नंदिकेश्वर भगवान शिव को कहा गया है और चामुंडा यह देवी दुर्गा के स्वरूप श्री चामुंडा देवी को समर्पित है। मंदिर के गर्व ग्रह में माँ चामुंडा देवी की पवित्र मूर्ति विराजमान है, जो बेहद ही ऐतिहासिक और पौराणिक है। चामुंडा की मूर्ति को कई रंगों में लपेटा जाता है, लेकिन लाल और काले रंग का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।
चामुंडा दो शब्दों से बना है चंड और मुंड पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी काली ने प्राचीन काल में इस स्थान पर एक भयंकर युद्ध में चंड और मुंड नामक दो कुख्यात राक्षसों का वध किया था। इसलिए, देवी को चामुंडा के नाम से जाना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। जिसका वर्णन मार्कंडेय पुराण के अंतर्गत दुर्गासप्तशती के 7वें अध्याय
के 27वें श्लोक में मिलता है। धर्मशाला में चामुंडा देवी मंदिर कोई आम मंदिर नहीं है। यह हिल स्टेशन के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इस मंदिर के साथ बहुत सारा इतिहास भी जुड़ा हुआ है। यह मंदिर प्राचीन है, जो 16वीं शताब्दी का है, और कई आध्यात्मिक किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है।
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है की माँ चामुंडा देवी पहले धौलाधार के पहाड़ो में विराजमान थी जो आज भी हिमानी चामुंडा देवी के रूप में विराजमान है, जो चामुंडा देवी मंदिर से कुछ किलोमीटर की दुरी में एक पैदल ट्रेक है, कहा जाता है की माँ चामुंडा देवी का एक प्रिय भक्त था जो जिसने कई वर्षो तक माँ चामुंडा की आराधना और पूजा अर्चना की उनके दर्शन के लिए क्युकी भक्त काफी बुजुर्ग था ऐसे में वो कई किलोमीटर का पैदल ट्रेक कर मंदिर में नहीं पहुंच सकता था, ऐसे में भक्त की भक्ति से खुश होकर माँ चामुंडा उसके सपने में आई और उसे
कहा की उसके के एक भक्त को माँ चामुंडा देवी सपने में आई और उस भक्त से कहा की मेरी प्रीतमा इस स्थान में है उसे निकलाओ और उसे मूर्ति के रूप में विराजमान करो, जिसके बाद भक्त अगले ही दिन अपने कई साथियो के साथ उस स्थान में गया और खुदाई शुरू कर दी ऐसे में कुछ ही फिट खुदाई करने के बाद उन्हें उसी स्थान में माँ चामुंडा की एक ऐतिहासिक मूर्ति दिखाई दी और उन्होंने उसी स्थान में एक छोटा सा मंदिर बना दिया जो आज माँ चामुंडा के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक कथाओ के अनुसार यह भी कहा जाता है की काँगड़ा रियासत के राजा चंद्रभान मुगलो के साथ हुए एक युद्ध में हार गए थे, जिसके बाद मुगलो से बचने के लिए राजा अपनी सेना के साथ पहाड़ो की और चले गए और राजा ने पहाड़ की एक चोटी में माँ चामुंडा का मंदिर बनाया और माँ चामुंडा की उपासना की राजा की भक्ति और
पूजा अर्चना से खुश होकर माँ ने उसे बल दिया और एक बार फिर से राजा ने मुगलो को ललकारा और फिर से मुगलो से युद्ध किया इस बार मुगलो की पराजय हुई और राजा ने अपनी काँगड़ा रियासत और अपने किले को मुगलो से आजाद करवाया जिसके बाद राजा प्रति वर्ष इस स्थान में आकर माँ की पूजा अर्चना किया करता था।
कहा जाता है की एक बार मंदिर की सफाई के दौरान एक भक्त द्वारा मूर्ति का एक छोटा सा भाग टूट गया जिसके बाद भक्त घबरा गया की अब यह मूर्ति तो घंडित हो गयी अब क्या किया जाए उनसे अपने सभी अधिकारी गणो को जब इस बारे में बताया की मूर्ति की सफाई के दौरान उसे से मूर्ति का एक छोटा सा भाग टूट गया है, ऐसे में जब उन्होंने उस मूर्ति को निकालने और उसे फिर से आकर देने के लिए उस की खुदाई की तो
उसी स्थान में एक बड़ी टोकरी में माँ का सिंदूर निकला जिससे उन्हें यह ज्ञात हो गया की यह मंदिर और पवित्र मूर्ति बेहद ही ऐतिहासिक और पौराणिक है। ऐसे में उन्होंने माँ की मूर्ति को उस सिंदूर से नहलाया और उसे फिर से स्थापित कर दिया जिसके बाद से यह परम्परा बन गयी की प्रतिवर्ष माँ चामुंडा की मूर्ति से नवरात्रो की अस्टमी के दिन पुराना सिंदूर निकाला जाता है और नया सिंदूर लगाया जाता है।
साथ ही देवी की मूर्ति को कमल सहित विभिन्न रंगों और फूलों की माला से सजाया जाता है। साथ ही कभी कभी मूर्ति पर नींबू की माला का उपयोग किया जाता है। गर्भगृह के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हनुमान और भैरव की मूर्तियाँ स्थापित हैं और उन्हें देवी चामुंडा जी के द्वारपाल के रूप में जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बनेर नदी के तट पर स्थित चामुंडा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है।
धर्मशाला से मात्र 16 किलोमीटर की दुरी में स्थित चामुंडा देवी मंदिर, अपनी लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता और चाय के बागानों की प्रचुरता के लिए प्रसिद्ध एक हिल स्टेशन है, जो लंबे समय से एक पसंदीदा धार्मिक पर्यटन स्थल रहा है। कई आध्यात्मिक किंवदंतियों के अलावा, मंदिर की आयु और बुनियादी वास्तुकला - जो पारंपरिक हिमाचली मंदिर निर्माण से प्रेरणा लेती है - पूरे भारत में पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
यह मंदिर उन पर्यटकों के लिए भी एक लोकप्रिय गंतव्य साबित हुआ है जो प्राचीन मंदिरों की तस्वीरें लेना पसंद करते हैं, इसके अलावा, देवी दुर्गा के एक रूप चामुंडा देवी की प्राचीन मूर्ति भी यात्रियों, फोटोग्राफरों और भक्तों के बीच समान रूप से रुचि का एक बड़ा विषय है।
इस धार्मिक स्थान की खास सबसे बात यह है जो इसे और भी लोकप्रिय और प्रसिद्ध बनाती है, इस मंदिर के किनारे बह रही बनेर खड्ड के किनारे एक समशान घाट है जंहा प्रतिदिन शव जलाया जाता है, ऐसा इस लिए है क्युकी एक पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है की इस स्थान में एक समय जिंदावली नाम का राक्षक हुआ करता था, जो लोगो का नरसंहार किया करता था, जिससे परेशान होकर उस समय के राजा ने उनसे विनम्र प्राथन की और निवेदन किया की आप रोज़ कई लोगो का नरसंहार कर रहे है ऐसे में तो एक हमारी प्रजा बहुत जल्द खत्म हो जायेगी,
ऐसे में राक्षक ने कहा की तुम तो अपनी प्रजा की रक्षा की बात कर रहे हो परन्तु मेरी भूख का क्या ऐसे में राजा ने राक्षक से कहा की हम आपकी भूख के लिए प्रतिदिन एक जिन्दा व्यक्ति या मृत व्यक्ति देंगे जिससे आपकी भूख भी हट जायेगी और मेरी प्रजा भी जल्दी खत्म नहीं होंगी, ऐसे में कई वर्षो तक ऐसा चलता रहा गांव में जब भी किसी की
भी मृत्यु होती तो उसे उसके शव को राक्षक को दे दिया जाता, और जिस दिन कोई शव नहीं होता तो उस दिन जिन्दा व्यक्ति राक्षक को सौंप दिया जाता। ऐसे में एक गांव में एक महिला के दो बेटे थे जिसमे से एक बेटे की बलि चढ़ गयी थी और अब दूसरे की बारी थी जिसे राक्षक को सौंपना था, ऐसे में महिला ने जिस दिन अपने बेटे को राक्षक के पास भेजना था, उस दिन महिला ने कई स्वादिष्ट पकवान बनाये और शिव भगवान् को प्रसाद के रूप में चढ़ाया
और भगवान् शिव की आराधना की, ऐसे में भगवान् शिव महिला की भक्ति और अपने बेटो के प्रति प्रेम को देकर काफी प्रसन हुए, और एक साधू का रूप धारण कर महिला के पास पहुंचे महिला, साधू को देकर महिला ने वही पकवान साधू को भी परोसे ऐसे में महिला की नम आँखों को देकर जब साधू ने महिला से पूछा की तुम एक तरफ
स्वादिष्ट पकवान भी बना रही हो और दूसरी तरफ रो भी रही हो ऐसा क्यों ऐसे में महिला ने साधू को राक्षक जिंदावली की पूरी कहानी बताई, ऐसे में साधू ने महिला से कहा की आप परेशान क्यों हो रही हो आपके बेटे की जगह में चला जाता मेरे आगे पीछे वैसे भी कोई नहीं है ऐसा करते के आपका बेटा भी बच जाएगा और राक्षक की भूख भी मिट जायेगी।
जब साधू समशान पहुंचा तो उसने अपने आप को राक्षक को सौंप दिया, जैसे ही राक्षक ने उस साधू की बलि देनी चाही तो बड़ी बड़ी चट्टानें और शिलाये उस राक्षक के ऊपर गिरने लगी, और उन्ही चट्टानों और शिलाओं के नीचे आकर उस राक्षक की मृत्यु हो गयी, ऐसे में राक्षक को जब अपने पापो का पच्यताप हुआ तो उसने भगवान् शिव की उपासना की और जिसके बाद भगवान शिव ने प्रसन होकर राक्षक को कहा की इस स्थान में जो भी शव आएगा उसकी आत्मा मेरे चरणों में तेरे से होते हुए ही आएगी।
यह श्मशान घाट सदियों पुराना है और इसे स्थानीय समुदाय ने मृत आत्माओं की शांति के लिए स्थापित किया। यह घाट केवल अंतिम संस्कार के लिए ही नहीं, बल्कि ध्यान और साधना के लिए भी उपयोग किया जाता था। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस घाट पर ध्यान और साधना करने से आत्मा को शुद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है। यह स्थान देवी की कृपा से ऊर्जावान और पवित्र माना जाता है। श्मशान घाट के पास की कुछ संरचनाएँ और मूर्तियाँ प्राचीन
कला और संस्कृति को दर्शाती हैं, जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियाँ शामिल हैं। आज भी यह स्थान धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना हुआ है और लोग यहाँ अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। भक्त और पर्यटक यहाँ ध्यान और शांति की तलाश में भी आते हैं। इस प्रकार, चामुंडा देवी मंदिर के पास का श्मशान घाट धार्मिक, पौराणिक, और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन और मृत्यु के गहरे दर्शन को व्यक्त करता है।
पालमपुर में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण के रूप में चामुंडा देवी मंदिर में आने वाले पर्यटकों की बड़ी संख्या के अलावा, इस अनोखे पहाड़ी शहर के स्थानीय निवासी इसे क्षेत्र के सबसे पवित्र पूजा स्थलों में से एक मानते हैं, खासकर इसके साथ जुड़ी कई दिलचस्प किंवदंतियों और इतिहास के कारण। आस-पास के पहाड़ी शहरों के निवासी और भक्त देवी की पूजा करने के लिए इस मंदिर में आते हैं।
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