भागसू नाग मंदिर हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा धार्मिक स्थान जंहा भगवान से पहले लिया जाता है दैत्य का नाम

भागसू नाग मंदिर हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा धार्मिक स्थान जंहा भगवान से पहले लिया जाता है दैत्य का नाम, जी हां आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा के सबसे लोकप्रिय पर्टयक स्थान मैक्लोडगंज के साथ 

लगते क्षेत्र भागसू नाग मंदिर से समवन्दित कई ऐतिहासिक, पौराणिक, वास्तविक और रहस्मयी बातो को बताने जा रहे है। जिसके बाद आप भी अपने आप को इस स्थान में जाने से नहीं रोक पाओगे, भागसू नाग मंदिर की स्थापना पांच हजार चुरानवे वर्ष पहले हुई थी। भागसू नाग मंदिर का नाम दैत्य राजा भागसू और नाग देवता के नाम पर पड़ा है। 


                                                        भागसू नाग मंदिर हिमाचल प्रदेश


यह धार्मिक और रहस्मयी मंदिर ऐतिहासिक होने के साथ साथ बेहद ही रहस्मयी भी है, भागसू नाग मंदिर के प्रांगण के बिलकुल सामने दो पानी के कुंड है, मान्यता है की यह पानी मंदिर से चौबीस किलोमीटर दूर धौलाधार की पहाड़ियों में स्थित नाग डल से पहाड़ो के अंदर से होता हुआ इस स्थान में निकलता है। इस कुंड के पानी को बहुत ही पवित्र माना जाता है, इस पानी में नहाने से कई चर्म रोगो से मुक्ति मिलती है और इस पवित्र कुंड में सिक्के डालने से जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामनाएं मानता है उसकी भी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है।


पौराणिक कथा के अनुसार "नो हजार एक सो चौबीस" वर्ष पूर्व द्वापर युग के मध्यकाल में दैत्यों के राजा भागसू की राजधानी अजमेर देश में हुआ करती थी। उसके राज्य में बहुत दिनों से पानी न बरसने और सूखा पड़ने के कारण उसकी प्रजा के प्रमुखों ने उठकर अपने राजा भागसू से प्रार्थना की कि आप पानी का प्रबंध करें, यदि आपने ऐसा नहीं किया तो हम सभी गांव वाले इस देश को छोड़कर अन्य देश में चले जाएंगे। अपनी प्रजा की ऐसी स्थिति को देख कर दैत्य राज भागसू ने प्रजा प्रमुखों को आश्वासन दिया की उनको जल्द से जल्द पानी पहुंचा दिया जाएगा। 


ऐसे में राजा भागसू स्वयं उठकर पानी की तलाश में निकल पड़े भागसू दैत्य मायावी होने के कारण मात्र ही दो ही दिनों में ही अजमेर से नाग डल के पास पहुंच गए। नाग डल पहाड़ की चोटी पर 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। नाग डल में पानी काफी गहरा था और दूर-दूर तक फैला हुआ था। लेकिन दैत्य भागसू ने अपनी मायावी शक्ति के चलते नाग डल का सारा पानी कमंडल में भर लिया व स्वयं विश्राम करने लगा।

सायंकाल में जब नाग देवता भ्रमण करते हुए अपने डल में पहुँचे तो उन्होंने देखा तो वो अचम्भित हो गए उन्होंने देखा की उनका डल पूरी तरह से  सूखा पड़ा है। अपनी शक्ति से दैत्य भागसू के पद चिन्हों को देखते हुए नाग देवता उस स्थान पर पहुंच गए जिस स्थान पर भागसू दैत्य विश्राम कर रहे थे।  


ऐसे में दैत्य राजा भागसू और नाग देवता के बिच इस जल को ले जाने को लेकर कंहासुनि हो गयी क्युकी भागसू चोरी छुपे इस जल को अपनी माया से अजमेर ले जाना चाहता था, यह कहासुनी एक बड़े युद्ध में बदल गयी उस दौरान दैत्य भागसू और नाग के बीच हुए युद्ध में नाग देवता ने भागसू को पराजित कर दिया। लेकिन युद्ध के दौरान कमंडल जल धरती पर गिर गया और जिसके बाद सूखा हुआ नाग डल फिर भर गया। पानी का एक चश्मा आजकल भागसू नाग मंदिर में पर्टयकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। जहां पर श्रदालु स्नान कर अपने रोगो को दूर करते हैं।


दैत्य भागसू ने मरते समय नाग देवता की काफी स्तुति की उन्होंने कहा की में तो इस जल को अपनी प्रजा के लिए लेकर जा रहा था, परन्तु ऐसे में नाग देवता ने कहा की तुम इस जल को अपनी मायावी शक्ति का उपयोग कर ले जा रहे थे, यदि तुम मुझसे आग्रह करते और अपनी समस्या बताते तो में खुद यह जल आपके राज्य पहुंचा कर आता, परन्तु तुमने जल को चोरी करने का पाप किया है, तुम्हारे इस पाप की बजह से कई जिव जंतुओं की मृत्यु हुई है जो इस जल को ग्रहण कर अपनी प्यास भुजाते थे, तुमने जो पाप किया है इस का तो दंड तो तुमको मिलना ही था, 


ऐसे में जब दैत्य भागसू ने अपनी भूल स्वीकार कर ली तो नाग देवता ने प्रसन होकर दैत्य भागसू को एक वरदान दे दिया की आपके राज्य में पड़ा सूखे का आकाल खत्म हो जाएगा और दूसरा क्युकी तुम अपना कर्तव्य निभा रहे थे और यह जल अपनी प्रजा की प्यास भुजाने के लिए लेकर जा रहे थे तो ऐसे में इस स्थान में भी हमेसा ही जल रहेगा। जंहा तुम्हारा कमंडल। गिरा है। साथ ही नाग देवता ने यह भी वरदान दिया की श्रदालु मेरे नाम से पहले आपके नाम का जाप करेंगे और मेरे नाम से पहले आपका नाम आएगा जिसके बाद यह स्थान भागसू नाग नाम से देश विदेश में प्रचलित हुआ। 


एक पौरोणिक कथा के अनुसार कलयुग के प्रवेश में यहां धर्म चंद राजा राज्य करते थे, उस वक्त भगवान शंकर भागेश्वर ने उन्हें स्वपन में कहा कि नाग देवता के पवित्र जल की स्थापना यहां होनी है। राजा ने स्वपन के अनुसार भागसू नाग मंदिर की स्थापना 5080 वर्ष पहले की। इस पवित्र स्थान में स्नान करने के लिए दूर-दूर से यहां भक्त पहुंचते है। अब इस स्थान को भागसू नाग कहा जाता है। यहां आने वाले लोग भागसू नाग डल के पानी में डुबकी लगाते हैं। अब इस स्थान में स्नान के लिए बढ़िया तालाब भी बनाया गया। वर्तमान समय में मंदिर के विकास व श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जिला प्रशासन ने मंदिर को अपने अधीन ले लिया है। 


मंदिर के मुख्य गर्व ग्रह में शिा व लिंग सयम्भू के रूप में विराजमान है, जिसके शीर्ष में नाग देवता और शिव भगवान की प्रतिमा है। मंदिर के गर्व ग्रह के बिलकुल सामने नंदी बैल और एक शिव भगवान की प्रतिमा है, प्रतिमा के के साथ ही एक अखंड धुना है जो कई हजार वर्षो से निरंतर जल रहा है। इस धार्मिक स्थान में आपको कई जिन्दा समाधिया भी देखने को मिलेंगी जो इस स्थान को और भी पवित्र और लोकप्रिय बनाती है। इस की छत में आपको लड़की में बनी बारीक नक्काशी जिसे काठ कुणी वास्तुकला शैली कहा जाता है इस मंदिर को और भी अधिक खूबसूरत और आकर्षित बनाती है। मंदिर के शुरुआत में ही कुछ सिडिंया चढ़ते ही आपको भगवान् गणेश, बाबा बालक नाथ, राम और सीता, और भग्वान शिव की प्रतिमा देखने को मिलेगी। साथ ही यंहा आपको राधा कृष्ण की मूर्ति भी देखने को मिलगी। 


मंदिर के प्रागण में पीपल का एक बड़ा पेड़ है जिसके नीचे बैठ कर आप आराम या ध्यान लगा सकते हो और प्रकृति के सौंदर्य को निहार सकते है। पीपल के पेड़ के साथ ही भगवन शनि जी का मंदिर है। इस मंदिर का भवन कई हजार वर्ष पुराना है, जिसको स्लेट और लकड़ी का उपयोग कर बनाया गया है। मंदिर के नीचे स्थित पवित्र कुंड के प्रवेश द्वार में भगवान् गणेश और हनुमान जी की प्रतिमा है जो सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 


मंदिर के मुख्य द्वार के सामने एक छोटी सी मार्किट है, जंहा आप शॉपिंग कर सकते है, साथ ही यंहा आप कई स्वादिस्ट पकवानो का आंनद ले सकते है जिसमे हिमाचली और तिब्बती समुदाय के कई लोकप्रिय पकवान शामिल है, साथ ही इस धार्मिक स्थान के साथ ही प्रदेश का लोकप्रिय पर्टयक स्थान भागसू नाग वाटर फॉल है, जंहा आप बैठ का खूबसूरत प्राकृतिक झरने के साथ फोटोग्राफी कर सकते है। इसी वाटर फॉल से होते हुए आप त्रिउंड ट्रेक, स्नो लाइन, लाका गलेशियर, इन्दर हार, मून पिक, और चम्बा ट्रेक कर सकते है। हर साल हजारो लाखो की संख्या में सैलानी इस स्थान की धार्मिक स्थान की यात्रा के लिए आते है। 


यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय पर्टयक स्थान धर्मशाला से मात्र 9 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। जंहा आप अपनी कैब, लोकल बस, या रोपवे के माध्यम से भी पहुंच सकते है। नजदीकी रेल मार्ग पठानकोट और नजदीकी हवाई मार्ग गगल एयरपोर्ट है। साथ ही आप राजधानी दिल्ली से धर्मशाला तक वॉल्वो बस के माध्यम से भी पहुंच सकते है। यदि अभी तक आपने इस स्थान की यात्रा नहीं की तो आज ही अपनी हिमाचल प्रदेश यात्रा में इस 

धार्मिक स्थान को शामिल कर इस खूबसूरत और प्राकर्तिक सौंदर्य से भरपूर स्थान में का आनंद ले और यदि आपको हमारी यह वीडियो अच्छी लगे तो वीडियो को अधिक से अधिक शेयर करे और इसी तरह की वीडियोस के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूले और अगली वीडियो आपको किस स्थान की चाहिए कमेंट के माद्यम से बताये हम प्रयास करेंगे आपको उस स्थान की विस्तृत जानकारी दे पाए।

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